“डॉ. भीम राव अंबेडकर: समानता और सामाजिक न्याय के चैंपियन”
भीम राव अंबेडकर का जन्म
भीम राव अंबेडकर (1891-1956) का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के महाओ कैंटोनमेंट, जो अब मध्य प्रदेश में है, में हुआ था । उनके पिताश्री रामजी वल्द मालोजी सकपाल महू में ही मेजर सूबेदार के पद पर एक सैनिक अधिकारी थे। अपनी सेवा के अंतिम वर्ष उन्होंने और उनकी धर्मपत्नी भीमाबाई ने काली पलटन स्थित जन्मस्थली स्मारक की जगह पर विद्यमान एक बैरेक में गुजारे। सन् 1891 में 14 अप्रैल के दिन जब रामजी सूबेदार अपनी ड्यूटी पर थे, 12 बजे यहीं भीमराव का जन्म हुआ । उसके मन में छोटे से ही उत्साह और ध्यान की शक्ति थी। वह छोटे से ही अन्य बच्चों की तरह नहीं था। उसका विचार अद्भुत था, जो उसे अपने योग्यताओं की पहचान करने में मदद की। वह गहरी चिंतनशीलता के साथ जीवन की अन्य सबसे महत्वपूर्ण मुद्दों को समझने की क्षमता रखता था। उसके पिता-माता ने उसे नैतिकता और सही दिशा में चलने की शिक्षा दी। इसके परिणामस्वरूप, वह अपने जीवन के हर कदम पर सत्य और न्याय की ओर प्रेरित रहा। उसने सदैव उच्चतम मानकों को अपनाया और उन्हें अपने जीवन का मूल्यांकन किया। बचपन से ही, उसने समाज के न्याय और समर्थन के प्रति आदर्श दिखाया और उसने हमेशा समाज के हित के लिए काम किया। उसके आदर्शों ने उसे उन्नति की ओर ले जाया और उसने अपने जीवन में अपने कार्यों के माध्यम से अपनी प्रासंगिकता साबित की।
शिक्षा
बालक भीमराव ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा दापोली और सतारा में प्राप्त की, और फिर बॉम्बे के एल्फिन्स्टोन स्कूल से 1907 में मैट्रिक की परीक्षा पास की। इस महत्वपूर्ण अवसर पर, उसके लिए एक उत्सव समारोह का आयोजन किया गया। और उसमें भेंट स्वरुप उनके शिक्षक श्री कृष्णाजी अर्जुन केलुस्कर ने स्वलिखित पुस्तक ‘बुद्ध चरित्र’ उन्हें प्रदान की। बड़ौदा नरेश सयाजी राव गायकवाड की फेलोशिप पाकर भीमराव ने 1912 में मुबई विश्वविद्यालय से स्नातक परीक्षा पास की। संस्कृत पढने पर मनाही होने से वह फारसी लेकर उत्तीर्ण हुये।
अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय
उन्होंने बीए के बाद एमए के अध्ययन के लिए बड़ौदा के नरेश सयाजी गायकवाड़ से फिर से फेलोशिप प्राप्त की और इसके बाद अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। सन् 1915 में उन्होंने स्नातकोत्तर उपाधि की परीक्षा पास की।इस हेतु उन्होंने अपना शोध ‘प्राचीन भारत का वाणिज्य’ लिखा था । उसके बाद 1916 में कोलंबिया विश्वविद्यालय अमेरिका से ही उन्होंने पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की, उनके पीएच.डी. शोध का विषय था ‘ब्रिटिश भारत में प्रातीय वित्त का विकेन्द्रीकरण’ था।
लंदन स्कूल ऑफ इकोनामिक्स एण्ड पोलिटिकल सांइस
उन्होंने फेलोशिप के समापन के बाद भारत लौटने का निर्णय किया, जिसके लिए वे ब्रिटेन के लिए रवाना हो रहे थे। वहां लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स एंड पॉलिटिकल साइंसेस में एमएससी और डीएससी के लिए और विधि संस्थान में बार-एट-लॉ के लिए अपना पंजीकरण किया। फिर वे भारत लौटे। पहले छात्रवृत्ति के शर्तों के अनुसार, वे बडौदा नरेश के दरबार में सैन्य अधिकारी और वित्तीय सलाहकार के रूप में काम करने के लिए तैयार हुए।सब से पहले छात्रवृत्ति की शर्त के अनुसार बडौदा नरेश के दरबार में सैनिक अधिकारी तथा वित्तीय सलाहकार का दायित्व स्वीकार किया। पूरे शहर में उनको किराये पर रखने को कोई तैयार नही होने की गंभीर समस्या से वह कुछ समय के बाद ही मुंबई वापस आये।
दलित प्रतिनिधित्व
परेल के डबक चाल और श्रमिक कॉलोनी में रहकर, उन्होंने अपनी अधूरी पढ़ाई को पूरा करने के लिए पार्ट-टाइम अध्यापन और वकालत का काम किया। उन्होंने अपनी धर्मपत्नी रमाबाई के साथ एक संघर्षपूर्ण लेकिन संवेदनशील जीवन बिताया।सन 1919 में डॉ. अम्बेडकर ने राजनीतिक सुधार हेतु गठित साउथबरो आयोग के समक्ष राजनीति में दलित प्रतिनिधित्व के पक्ष में साक्ष्य दी ।
अशिक्षित और निर्धन लोगों को जागरुक बनाने के लिया काम
उन्होंने मूक और अशिक्षित और निर्धन लोगों को जागरुक बनाने के लिये मूकनायक और बहिष्कृत भारत साप्ताहिक पत्रिकायें संपादित कीं और अपनी अधूरी पढ़ाई पूरी करने के लिये वह लंदन और जर्मनी जाने के बाद, वहां सेउन्होंने एमएससी, डीएससी, और बैरिस्टर की उपाधियाँ हासिल की। उनका एमएससी का शोध विषय साम्राज्यीय वित्त के प्राप्ति से संबंधित विकेंद्रीकरण का विश्लेषणात्मक अध्ययन था, और उनकी डीएससी उपाधि का विषय था रूपये की समस्या, उसके उद्भव और उपाय, और भारतीय बैंकिंग इतिहास।
डी. लिट्. की मानद उपाधियों से सम्मानित
बाबासाहेब डॉ. अम्बेडकर को कोलंबिया विश्वविद्यालय ने एल.एलडी और उस्मानिया विश्वविद्यालय ने डी. लिट्. की मानद उपाधियों से सम्मानित किया था। इस प्रकार डॉ. अम्बेडकर वैश्विक युवाओं के लिये प्रेरणा बन गये क्योंकि उनके नाम के साथ बीए, एमए, एमएससी, पीएचडी, बैरिस्टर, डीएससी, डी.लिट्. आदि कुल 26 उपाधियां जुडी है ।
योगदानः
भारत रत्न डॉ. बी. आर. अम्बेडकर ने अपने जीवन के 65 वर्षों में देश को सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षणिक, धार्मिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक, औद्योगिक, संवैधानिक इत्यादि विभिन्न क्षेत्रों में अनगिनत कार्य करके राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया, उनमें से मुख्य निम्नलिखित हैं :-
सामाजिक एवं धार्मिक योगदानः
मानवाधिकार के मुद्दों में, दलितों और आदिवासियों के मंदिर प्रवेश, पानी पीने, छुआछूत, जातिपाति, ऊँच-नीच जैसी सामाजिक कुरीतियों को मिटाने के लिए मनुस्मृति दहन (1927), महाड सत्याग्रह (1928), नासिक सत्याग्रह (1930), और येवला की गर्जना (1935) जैसे आंदोलन चलाए गए। इसके साथ ही, बेजुबान, शोषित, और अशिक्षित लोगों को जगाने के लिए 1927 से 1956 तक मूक नायक, बहिष्कृत भारत, समता, जनता, और प्रबुद्ध भारत नामक पांच साप्ताहिक और पाक्षिक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया गया। कमजोर वर्गों के छात्रों को छात्रावासों, रात्रि स्कूलों, ग्रंथालयों, और शैक्षणिक गतिविधियों के माध्यम से अपने दलित वर्ग शिक्षा समाज (स्थापना 1924) के जरिए अध्ययन करने और साथ ही आय अर्जित करने के लिए उन्हें सक्षम बनाया गया।
सन् 1945 में उन्होंने अपनी पीपुल्स एजुकेशन सोसायटी के जरिए मुम्बई में सिद्वार्थ महाविद्यालय तथा औरंगाबाद में मिलिन्द महाविद्यालय की स्थापना की । बौद्धिक, वैज्ञानिक, प्रतिष्ठा, भारतीय संस्कृति वाले बौद्ध धर्म की 14 अक्टूबर 1956 को 5 लाख लोगों के साथ नागपुर में दीक्षा ली तथा भारत में बौद्ध धर्म को पुनर्स्थापित कर अपने अंतिम ग्रंथ “द बुद्धा एण्ड हिज धम्मा” के द्वारा निरंतर वृद्धि का मार्ग प्रशस्त किया ।
जात पांत तोड़क मंडल (1937) के लाहौर अधिवेशन के लिए तैयार अपने भाषण को “जातिभेद निर्मूलन” नामक उनके ग्रंथ ने भारतीय समाज को धर्मग्रंथों में व्याप्त मिथ्या, अंधविश्वास, और एवं अंधश्रद्धा से मुक्ति दिलाने का कार्य किया । हिन्दू विधेयक संहिता के जरिए महिलाओं को तलाक, संपत्ति में उत्तराधिकार आदि का प्रावधान कर उसके कार्यान्वयन के लिए वह जीवन पर्यन्त संघर्ष करते रहे।
आर्थिक, वित्तीय और प्रशासनिक योगदान
भारत में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की स्थापना, डॉ. अम्बेडकर द्वारा लिखित शोध ग्रंथ रूपये की समस्या – उसका उद्भव तथा उपाय, और भारतीय चलन व बैंकिंग का इतिहास के आधार पर 1935 में हुई। उनके दूसरे शोध ग्रंथ ‘ब्रिटिश भारत में प्रांतीय वित्त का विकास’ के आधार पर देश में वित्त आयोग की स्थापना हुई। उन्होंने कृषि में सहकारी खेती के द्वारा पैदावार बढ़ाने, सतत विद्युत और जल आपूर्ति करने का उपाय भी बताया।
औद्योगिक विकास, जलसंचय, सिंचाई, श्रमिक और कृषक की उत्पादकता और आय बढाना, सामूहिक तथा सहकारिता से प्रगत खेती करना, जमीन के राज्य स्वामित्व तथा राष्ट्रीयकरण से सर्वप्रभुत्व सम्पन्नसमाजवादी गणराज्य की स्थापना करना ।
सन 1945 में उन्होंने महानदी का प्रबंधन की बहुउददेशीय उपयुक्तता को परख कर देश के लिये जलनीति तथा औद्योगिकरण की बहुउद्देशीय आर्थिक नीतियां जैसे नदी एवं नालों को जोड़ना, हीराकुण्ड बांध, दामोदर घाटी बांध, सोन नदी घाटी परियोजना, राष्ट्रीय जलमार्ग, केन्द्रीय जल एवं विद्युत प्राधिकरण बनाने के मार्ग प्रशस्त किये।
1944 में प्रस्तावित केन्द्रीय जल मार्ग और सिंचाई आयोग के प्रस्ताव को वाइसराय ने 4 अप्रैल 1945 को मंजूरी दी और भारत में बड़े बांधों की तकनीकों का लागू करने का प्रस्ताव किया। उन्होंने भारत के विकास के लिए मजबूत तकनीकी संगठन का नेटवर्क ढांचा प्रस्तुत किया और जल प्रबंधन और विकास, साथ ही नैसर्गिक संसाधनों को देश की सेवा में सार्थक रूप से प्रयुक्त करने का मार्ग प्रस्तावित किया।
संविधान तथा राष्ट्र निर्माण
उन्होंने समता, समानता, बन्धुता, और मानवता पर आधारित भारतीय संविधान को 02 वर्ष, 11 महीने, और 17 दिनों के कठिन परिश्रम से तैयार किया और 26 नवंबर 1949 को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को सौंपा। इससे देश के समस्त नागरिकों को राष्ट्रीय एकता, अखंडता, और व्यक्ति की गरिमा के लिए एक जीवन पध्दति से भारतीय संस्कृति को अभिभूत किया गया। 1951 में, महिला सशक्तिकरण का हिन्दू संहिता विधेयक को पारित करवाने का प्रयास किया, और अगर यह पारित न होता, तो स्वतंत्र भारत के प्रथम कानून मंत्री के पद से इस्तीफा दिया।। वर्ष 1955 में अपना ग्रंथ भाषाई राज्यों पर विचार प्रकाशित कर आन्ध्रप्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र को छोटे-छोटे और प्रबंधन योग्य राज्यों में पुनर्गठित करने का प्रस्ताव दिया था, जो उसके 45 वर्षों बाद कुछ प्रदशों में साकार हुआ।
निर्वाचन आयोग, योजना आयोग, वित्त आयोग, महिला पुरुष के लिये समान नागरिक हिन्दू संहिता, राज्य पुनर्गठन, बडे आकार के राज्यों को छोटे आकार में संगठित करना, राज्य के नीति निर्देशक तत्व, मौलिक अधिकार, मानवाधिकार, काम्पट्रोलर व ऑडीटर जनरल, निर्वाचन आयुक्त तथा राजनीतिक ढांचे को मजबूत बनाने वाली सशक्त, सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक एवं विदेश नीति बनाई ।
राज्य के प्रजातंत्र को मजबूती प्रदान करने के लिए तीनों अंगों, यानी न्यायपालिका, कार्यपालिका, और विधायिका को स्वतंत्र और पृथक बनाया गया, जिससे समान नागरिक अधिकारों के अनुरूप एक व्यक्ति, एक मत, और एक मूल्य के तत्व को समझाया गया।विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका में अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों की सहभागिता को संविधान द्वारा सुनिश्चित किया गया और भविष्य में किसी भी प्रकार की विधायिकता जैसे ग्राम पंचायत, जिला पंचायत, पंचायत राज इत्यादि में सहभागिता का मार्ग प्रशस्त किया गया। साथ ही, उन्होंने सहकारी और सामूहिक खेती के साथ-साथ उपलब्ध जमीन का राष्ट्रीयकरण कर भूमि पर राज्य का स्वामित्व स्थापित किया और सार्वजनिक प्राथमिक उद्यमों जैसे बैंकिंग, बीमा आदि को राज्य नियंत्रण में रखने की प्राथमिकता दी। उन्होंने कृषि की छोटी जोतों पर निर्भर बेरोजगार श्रमिकों को रोजगार के अधिक अवसर प्रदान करने के लिए औद्योगिकरण की सिफारिश की। सन 1944 में, उन्होंने श्रम मंत्रालय के रूप में श्रम कल्याण के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए, जैसे कि 12 घंटे की कामकाज से 8 घंटे की कामकाज दर को कम किया, समान वेतन और कार्य समय, प्रसूति अवकाश, स्वास्थ्य सुरक्षा, कर्मचारी भविष्य निधि आदि को लागू किया। उन्होंने कर्मचारियों के हित के लिए उपायों को सक्रिय किया, जैसे कि कर्मचारी राज्य बीमा, अनियमित कर्मचारियों के लिए अवकाश की सुविधा, कर्मचारियों के वेतन श्रेणी की समीक्षा, भविष्य निधि, आदि। 1943 में उन्होंने श्रम संघों को सक्रिय करने और श्रम संघ को सख्त करने के लिए भारतीय श्रमिक अधिनियम को संशोधित किया।। स्वास्थ्य बीमा योजना, भविष्य निधि अधिनियम, कारखाना संशोधन अधिनियम, श्रमिक विवाद अधिनियम, न्यूनतम मजदूरी अधिनियम और विधिक हडताल के अधिनियमों को श्रमिकों के कल्याणार्थ निर्माण कराया।
मृत्यु
डॉ। अम्बेडकर के स्वास्थ्य का स्थिति 1955 में लम्बे समय तक बीमारी के कारण खराब हो गया। उन्होंने 6 दिसंबर 1956 को दिल्ली में अपनी नींद में विधा ली।
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